Humayun's Tomb - हुमायूँ का मक़बरा
Humayun's Tomb - हुमायूँ का मक़बरा
मुग़ल शासक हुमायूँ का अंतिम शरण स्थान एक मकबरे के बजाय एक शानदार महल की याद दिलाता है। अपने ऊँचे मेहराब और भव्य गुम्बदों के साथ यही वह शानदार मकबरा है जिसने ताजमहल के लिए एक मॉडल और प्रेरणा के रूप में कार्य किया।
"1993 में UNESCO द्वारा इसे एक विशेष विश्व धरोहर (World Heritage Site) घोषित किया गया है"।
"1993 में UNESCO द्वारा इसे एक विशेष विश्व धरोहर (World Heritage Site) घोषित किया गया है"।
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Humayun's Tomb - हुमायूँ का मक़बरा |
पति के लिए एक पत्नी की यादगार
ताजमहल के विपरीत जो एक पति ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था, मक़बरा-ए-हुमायूँ एक पत्नी "हमीदा बानो बेग़म" द्वारा अपने पति के लिए बनवाया गया। हुमायूँ की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने जीवन का केवल एक ही लक्ष्य बनाया , एक शानदार यादगार।
मृत्यु के 9 साल बाद 1565 में इस शानदार मकबरे का काम अपनी निगरानी में शुरू करवाया, और यह 1572 में हुमायूँ के बेटे मुग़ल शहंशाह अकबर के संरक्षण में पूरा बनकर तैयार हुआ।
हुमायूँ पहले मुग़ल बादशाह थे जो भारत में पैदा हुए, फिर भी वह फ़ारस (ईरान), इस्लामी दुनिया और मध्य एशिया में घूमकर कुछ नए और रोमांचक विचार लाए, जिनमे से उनकी पत्नी ने कुछ को अपनाकर इस मक़बरे को बनवाया जो आज 400 साल बाद भी शानदार तरीके से खड़ा है।
Humayun's Tomb को बनने में करीब 8 साल और 15 लाख रूपए का खर्चा आया।
Humayun's Tomb को बनने में करीब 8 साल और 15 लाख रूपए का खर्चा आया।
हुमायूँ की मृत्यु
जनवरी 1556 में Humayun अपने पुस्तकालय में हाथों में किताबें लिए सीढ़ियों पर खड़े थे, तभी उन्होंने अज़ान की आवाज़ सुनी और नमाज़ के लिए झुकते समय संभल नहीं पाए और सीढ़यों से गिरते हुए फर्श पर सर के बल गिरे, जिससे 3 दिन बाद उनकी मौत हो गयी।
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Humayun's Tomb - हुमायूँ का मक़बरा |
पहले उनके शव को उनके महल, पुराना किला दिल्ली में दफनाया गया पर उसी वक़्त हिन्दू राजा हेमू ने मुग़लों को हराते हुए 1556 में आगरा और दिल्ली पर कब्ज़ा करते हुए पुराना किला पर कब्ज़ा कर लिया, इससे घबराकर हुमायूँ के शव को जमीन से बाहर निकाल कर भागती हुई फौज के साथ सिरहिंद, पंजाब ले जाया गया, जहाँ अकबर की ताजपोशी हुई।
1565 में हुमायूँ के मकबरे के बनने की शुरुआत हुई और 1572 में उनके पार्थिव शरीर को आखिरकार आराम करने के लिए रखा गया।
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Humayun's Tomb - हुमायूँ का मक़बरा |
जग़ह का महत्व
यह स्थल निजामुद्दीन दरग़ाह के पास होने के कारण यमुना नदी के किनारे पर चुना गया था, यह मक़बरा एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातात्विक जगह पर स्तिथ है, जो 14वीं शताब्दी के सूफी संत, हज़रत निजामुद्दीन औलिया के मज़ार पर केंद्रित है, उस वक़्त किसी सूफ़ी संत के पास दफ़नाया जाना शुभ माना जाता था।
चिश्तिया सूफ़ी संतों को मुग़लों द्वारा विशेष रूप से सम्मानित किया गया था, आगे चलकर हुमायूँ के बेटे अकबर ने फतेहपुर सिकरी में अपने महल का निर्माण भी एक चिश्तिया संत के दरगाह के पास ही कराया था।
बाद के मुग़ल इतिहास में अंतिम मुग़ल शासक बहादुर शाह जफ़र ने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान अपने तीन राजकुमारों के साथ यहाँ शरण ली थी।
पर रंगून (बर्मा) में निर्वासित होने से पहले अँग्रेजी कप्तान हॉडसन ने खुनी दरवाजा के पास तीनों राजकुमारों के माथे पर गोली मारकर, आम जनता के देखने के लिए उनके पार्थिव शरीर को 3 दिनों तक चांदनी चौक के पास रास्ते पर छोड़ दिया।
पर रंगून (बर्मा) में निर्वासित होने से पहले अँग्रेजी कप्तान हॉडसन ने खुनी दरवाजा के पास तीनों राजकुमारों के माथे पर गोली मारकर, आम जनता के देखने के लिए उनके पार्थिव शरीर को 3 दिनों तक चांदनी चौक के पास रास्ते पर छोड़ दिया।
1947 में देश के बटवारे के बाद, पुराने किले के साथ हुमायूँ का मकबरा भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों के लिए एक प्रमुख शरणार्थी स्थल बन गया।
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Me @ Humayun's Tomb - हुमायूँ का मक़बरा |
भारत का पहला चारबाग़ मक़बरा
मुख्य मकबरे को बनने में 8 साल का समय लगा था और इसे 30 एकड़ के चारबाग़ के केंद्र में रखा गया था, चारबाग़ एक फ़ारसी शैली में बना उद्यान है जिसमे एक वर्गाकार बाग़ को चार छोटे बागों में, चार पैदल रास्तों द्वारा बांटा जाता है।
इस्लामिक मान्यता के मुताबिक क़ुरान में वर्णित स्वर्ग के उद्यान और जन्नत में बहने वाली चार नदियों के रूप में इसे दर्शाया गया है। अधिकतर मुग़ल मकबरों के बाग़ इसी शैली में बने है, जिनका सबसे बड़ा उदाहरण ताजमहल है।
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Humayun's Tomb - हुमायूँ का मक़बरा |
मुग़लों का कब्रिस्तान
Humayun's Tomb ने "मुग़ल वंश के कब्रिस्तान" की उपाधि प्राप्त की है, किसी भी कब्रगाह में, भारत में या विदेश में, इतनी अधिक संख्या में मुग़लों की कब्रें नहीं है जितनी हुमायूँ के मकबरे और आसपास के बगीचों में है।
यहाँ लगभग 150 कब्रें हैं और 1547 में निर्मित इसा खान (जिनका सम्बन्ध शेर शाह सूरी और लोधी वंश से था) का मकबरा भी है जो एक मध्यवर्ती क्षेत्र का हिस्सा है। इनमे से एक मकबरा "नाइ का गुम्बद", है जो शाही नाइ से सम्बंधित है।
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Tomb of Isa Khan |
कैसे पहुँचे
इस मकबरे को रोजाना सुबह 8 बजे से शाम 9 बजे तक देखा जा सकता है। पहले इसे शाम को 6 बजे तक ही देख सकते थे, पर जुलाई 2019 से भारत सरकार ने देश के 10 प्रमुख पर्यटक जगहों को 9 बजे तक खोलने का निर्णय लिया है जिनमे से एक जगह यह भी है।
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Entrance gate Humayun's Tomb |
भारत, SAARC देश और BIMSTEC देश के रहने वालों के लिए यहाँ आने का प्रवेश शुल्क 10/- रूपए है, अन्य लोगों के लिए 5 डॉलर है, 15 साल तक के बच्चों के लिए यह फ्री है। आप यहाँ अपने साथ खाने और पीने की चीजें ला सकते है और एक शांतिपूर्ण समय गुजर सकते है।
नजदीकी दिल्ली मेट्रो स्टेशन - पिंक लाइन पर हज़रत निजामुद्दीन और ब्लू लाइन पर JLN स्टेडियम है।
लाजवाब लेखन और अद्भूत जानकारी ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद् I
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