Quwwat-ul-Islam Mosque Delhi - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद दिल्ली


Quwwat-ul-Islam Mosque Delhi - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद दिल्ली


       क़ुतुब परिसर के भीतर स्थित अपनी तरह के सबसे जटिल और विवादास्पद स्मारकों में से एक है, दिल्ली की पहली मस्जिद  - क़ुव्वत-उल-इस्लाम। 

       जबकि इसका करीबी पडोसी, क़ुतुब मीनार अपनी विशाल उपस्थिति का दावा करता है, मस्जिद को कुख्यात रूप से एक हिंसक और सांप्रदायिक अतीत की याद के रूप में देखा जाता है। मीनार और मस्जिद की साक्षेप सार्वजनिक स्थिति में एक उल्लेखनीय विरोधाभास है, मीनार को एक ऐतिहासिक और वास्तुशिल्प स्मारक के रूप में मनाया जाता है, तो मस्जिद को विनाश, आघात और कट्टरता के भयावह प्रमाण के रूप में देखा जाता है। 

Quwwat-ul-Islam Mosque Delhi - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद दिल्ली @ delhiblogs
Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद
       
       इस संरचना का सबसे विवादास्पद हिस्सा, मुख्य सार्वजनिक प्रवेश द्वार पर रखा गया शिलालेख है, जो क़ुतुब-उद-दीन ऐबक को जिम्मेदार ठहराते हुए कहता है - इस सामूहिक मस्जिद को बनाने के लिए 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था।  


Quwwat-ul-Islam Mosque  - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद - History - इतिहास 

          Quwwat-ul-Islam Mosque - मस्जिद, ममलूक वंश के संस्थापक क़ुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा प्रायोजित थी। तुर्की में एक ग़ुलाम के रूप में जन्मे, ऐबक को अफ़ग़ान सरदार मोहम्मद गौरी को बेचा गया था। ऐबक ने 1180 दशक में भारत पर मोहम्मद गौरी के आक्रमण के दौरान एक जनरल के रूप में प्रमुखता हासिल की। राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद, गौरी ने दिल्ली और अजमेर का शासन अपने सेना कमांडर ऐबक को सौंप दिया। 

       साल 1206 में गौरी की हत्या के बाद, क़ुतुब-उद-दीन आज़ाद हो गया और दिल्ली पर पहली मुस्लिम सल्तनत कायम की, उसने खुद को ममलूक वंश का ताज पहनाया। क़ुतुब की उत्पत्ति को देखते हुए ममलूक वंश को अक्सर ग़ुलाम वंश भी कहा जाता है। हालाँकि यह राजवंश कुछ शताब्दियों तक चला था, पर भारत में मुस्लिम शासन 1857 में अंग्रेजी संकट के समय तक बना रहा।


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       ऐबक एक कट्टर मुस्लिम था, जब साल 1192 में उसकी सेना ने, मोहम्मद गौरी की कमान में, दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया तो दिल्ली के अंतिम हिन्दू राजपूत साम्राज्य पर अपनी जीत को प्रतिकात्मता देने के लिए एक भव्य मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया। दिल्ली की पहली मस्जिद के निर्माण के लिए सामग्री प्राप्त करने हेतु, पहले से उपस्थित 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को नष्ट करने का हुक्म दिया। 

       क़ुव्वत-उल-इस्लाम अर्थात 'इस्लाम का गौरव' या 'इस्लाम की ताकत' मस्जिद का निर्माण काफी जल्दबाज़ी में करवाया गया, जिसके लिए कारीगरों की एक फ़ौज तैयार की गयी जिसमे ज्यादातर  शिल्पकार हिन्दू थे। 

       अपने धर्म की छाप को नए क्षेत्र में छोड़ने के लिए, ऐबक ने राजपूत गढ़ का दिल किला रायपिथौरा को चुना। क़ुतुब मीनार को मस्जिद के साथ-साथ जामी मस्जिद की मीनार के रूप में बनाया गया था, जहाँ से नमाज़ अदा करने के लिए अजान दी जा सके और क़ुतुब एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ - धुरी या प्रधान आधार है। यह मस्जिद, अजमेर राजस्थान में स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ा की याद दिलाता है जिसे ऐबक ने ही लगभग उसी समय पूर्व मंदिरों और संस्कृत विद्यालय को ध्वस्त करके बनवाया था।   


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       हिन्दू शिल्पकारों ने नष्ट हुए मंदिरों के स्तम्भों को फिर से तैयार किया, लेकिन मस्जिद में किसी की छवि या मूर्ति का इस्तेमाल वर्जित होने के कारण, स्तम्भों को लगाने में समस्या उत्पन्न हुई। इसीलिए शिल्पकारों को अत्यधिक गढ़े हुए स्तम्भों को प्लास्टर और ज्यामितीय (geometrical) डिज़ाइन से छिपाने के लिए मजबूर किया गया। हालाँकि सदियों की उपेक्षा के बाद, प्लास्टर गिरने लगा और मूल हिन्दू नक्काशी का खुलासा होने लगा। 

Quwwat-ul-Islam Mosque Architecture - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद वास्तुकला 

       Quwwat-ul-Islam Mosque भारत के सबसे पुरानी मौजूदा मस्जिदों में से एक है। मस्जिद के मूल आयामों में एक आँगन था जिसका माप 43 मीटर लम्बा और 33 मीटर चौड़ा था। पश्चिम में स्थित प्रार्थना हॉल 12 मीटर और 45 मीटर चौड़ा था। इसमें ग्रे पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। 


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       आंतरिक पूर्वी प्रवेश द्वार पर एक फ़ारसी शिलालेख के अनुसार, मस्जिद का निर्माण तोमर राजा और पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में बने 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को नष्ट करके किया गया और मंदिरों का कुछ हिस्सा मस्जिद के बाहर छोड़ देना उचित समझा गया।  

       भारत में मुस्लिम विजय के उपलक्ष्य में, क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद अपनी जीत की मीनार (क़ुतुब मीनार) के लिए जाना जाता है। यह लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनाया गया है, लेकिन संभवतः यह लोह स्तम्भ या Iron Pillar से प्रेरित है। यह ध्वस्त मंदिरों का एकमात्र टुकड़ा है जो अपने मूल स्थान पर खड़ा है। लगभग 1600 साल पहले लोहे से बना यह स्तम्भ, जंग से लगातार बचता आया है और मौर्यकाल के शानदार धातुकर्म कौशल का प्रमाण है।

       क़ुतुब-उद-दीन के पास कोई वास्तुशिल्प, शिल्पकार और मिस्त्री नहीं थे और ना ही मस्जिद बनाने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन थे। उसने इस काम के लिए 'लालकोट' के हिन्दू मिस्त्रियों को लगाया। परन्तु इस्लामिक अंदाज़ के बारे में बहुत कम जानकारी के कारण, इन कामगारों ने बिना प्रधान सिद्धांतों के मेहराबों का निर्माण किया, जो बाद में ढह गए। क़ुतुब-उद-दीन चाहता था की अरबी भाषा में कुरान के ग्रंथों को उकेरा जाए, पर कारीगर केवल सुन्दर फूल और पौधों को ही उकेर सके और पत्तियों के बीच में अरबी ग्रंथों को लिख सके।   


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       आपको मस्जिद के चारों ओर घंटियाँ, पत्ते, गाय, फूल और लटकन वाली रस्सियाँ जैसे हिन्दू रूपांकन मिलेंगे। वास्तव में मस्जिद के पीछे का हिस्सा मूल रूप से हिन्दू मंदिर था और इसे पृथ्वीराज चौहान के चौसठ खम्बा या 64-स्तम्भ वाले मंदिर के नाम से जाना जाता था। हिन्दू मंदिरों से इस्तेमाल किये गए स्तम्भों में मनुष्यों और जानवरों की छवियां थी, जो इस्लाम में प्रतिबंधित है। मस्जिद में एक गुम्बद भी नहीं है, या तो यह कभी बनाया नहीं गया था, या यह ढह गया।  

        ऐबक की मृत्यु के बाद मस्जिद का विस्तार जारी रहा। उनके दामाद इल्तुतमिश ने तीन ओर मेहराब द्वारा मूल प्रार्थना हॉल का विस्तार किया। इल्तुतमिश का शासन आने तक ममलूक वंश ने इतनी तरक्की कर ली थी की वह हिन्दू शिल्पकारों और मिस्त्रियों को इस्लामी लोगों से बदल सके। यही वजह है की इल्तुतमिश के तहत जोड़े गए मेहराब और पत्थरों पर अधिक इस्लामी प्रभाव है। और उनकी सामग्री भी ध्वस्त मंदिरों से नहीं ली गयी थी। 


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       इबन-बतूता (Ibn-Batuta), मोरक्को को एक विद्वान और खोजकर्ता ने भी यह कहा है की मस्जिद के पूर्वी द्वार के पास पत्थरों से एक साथ जुडी तांबे की दो बहुत बड़ी मूर्तियां था। और जो भी मस्जिद आते-जाते थे उन मूर्तियों पर से होकर गुजरते थे। यहाँ आने वाले अधिकांश आगंतुक यह नहीं जानते है की यह दिल्ली की पहली जामी मस्जिद (शुक्रवार मस्जिद) थी और साल 1360 तक दिल्ली की प्रमुख मस्जिद थी। 


Quwwat-ul-Islam Mosque Name - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद - नाम 

       दिलचस्प बात यह है की, क़ुव्वत-उल-इस्लाम नाम किसी भी पुराने शिलालेख या सल्तनत के किसी भी कालक्रम (Chronicle) में नहीं पाया जाता। इतिहासकारों का मानना है की संभवतः यह एक पुराने नाम 'क़ुब्बत-अल-इस्लाम' का एक आधुनिक भ्रष्ट नाम है जिसका अर्थ 'इस्लाम का अभ्यारण्य' या 'इस्लाम की धुरी' है। 


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       क़ुब्बत-अल-इस्लाम का प्रयोग पहली बार समकालीन इतिहासकार मिनाज-ए-सिराज जुज़जानि ने इल्तुतमिश की दिल्ली के लिए किया और बाद में लोकप्रिय सूफी संत बख्तियार काकी के आध्यात्मिक क्षेत्र (क़ुतुब परिसर) को परिभाषित करने के लिए किया गया। सूफी संत को इल्तुतमिश अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे और बहुत सम्मान करते थे। उनके अनुयायी संत को 'क़ुतुब' यानि 'धुरी' मानते थे, जिनके चारों ओर दुनिया घूमती थी और इसीलिए मस्जिद को क़ुब्बत-अल-इस्लाम नाम दिया गया। 

       साल 1847 में, प्रसिद्ध मुस्लिम समाज सुधारक और शिक्षाविद, सर सैयद अहमद खान ने अपना पहला प्रमुख काम, असर-अल-सनादिद प्रकाशित किया। इसमें वह मस्जिद के तीन नामों का उल्लेख करते है - 'मस्जिद-ए-अदीना देहलिया', 'मस्जिद-ए-जामी देहलिया' और 'क़ुव्वत-उल-इस्लाम' - लेकिन उन्होंने इन नामों की उत्पत्ति की कोई चर्चा नहीं की। तब से, एक नाम, क़ुव्वत-उल-इस्लाम, अटक गया।


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       आख़िरकार, यह नाम एक सैन्य कमांडर के रूप में ऐबक की प्रमुख छवि की अभिवंदन था, जिसने हिन्दू राजाओं को हराया और एक नई इस्लामी राजव्यवस्था स्थापित की - जिसकी एक अभिव्यक्ति, हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण करना भी थी। इस तरह क़ुव्वत-उल-इस्लाम नाम धीरे-धीरे मस्जिद का आधिकारिक नाम बन गया। 

       अगर क़ुतुब-उद-दीन, मंदिरों को गिरा कर बनाई गई मस्जिद से अपना महारथ और नियंत्रण बताना चाहता था तो यह कोशिश नाकाम रही और उस पर पलटवार साबित हुई। मंदिर के खम्भे, मस्जिद को एक निश्चित भारतीय चरित्र देते है। यह स्तम्भ किसी भी मुस्लिम देश की किसी भी मस्जिद की तरह नहीं दिखते थे। शायद यही सोचते हुए ऐबक ने ऊँचे नुकीले मेहराबों को जोड़ा जो फारस की इमारतों पर बनाये गए थे। जिससे पूरी चीज़ मंदिर की तरह कम और मस्जिद की तरह ज्यादा दिखे। 


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

       क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की गिरावट या पतन अला-उद-दीन खिलजी (1296-1316) के शासन के दौरान हुई, जिसे पश्चिम में अल्लादीन के रूप में जाना जाता था। शुरुआत में अला-उद-दीन मस्जिद के संरक्षण के लिए काफी इच्छुक था, यहाँ तक की उसने एक विशाल आँगन की दिवार बनवायी और एक विशाल नई मीनार (अलाइ मीनार) के आधार को खड़ा किया। हालाँकि, उसके सपने इतने भव्य थे की उसने 'लालकोट' को छोड़ते हुए अपनी खुद की राजधानी 'सिरी' में जाने का फैसला किया और उसके बाद मस्जिद अपना पूर्व सम्मान खोती चली गयी। 


Quwwat-ul-Islam Mosque - क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद - How to reach - कैसे पहुँचे 

       भारतीय आगंतुकों के साथ SAARC & BIMSTEC देशों के नागरिकों का प्रवेश टिकट 35/- रूपए का है और अन्य विदेशी सैलानियों के लिए 550/- रूपए है। 15 वर्ष तक के बच्चे मुफ्त प्रवेश कर सकते है। क़ुतुब परिसर सप्ताह के सभी दिनों में खुला रहता है और आने का समय सुबह 7:00 बजे से शाम 5:00 तक है। 

       स्मारक की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के मौसम के दौरान होता है, जब मौसन ठंडा और सुखद होता है। मस्जिद के लिए सबसे नज़दीकी दिल्ली मेट्रो स्टेशन - Qutub Minar Metro Station है। मेट्रो से बाहर निकलकर ऑटो या रिक्शा की मदद से परिसर तक जा सकते है जो 6-8 मिनट की दूरी पर है।



Qutub Complex - क़ुतुब परिसर 

       आज कुछ लोग क़ुतुब परिसर को मुस्लिम विजय का प्रतिक मानते है, और क़ुव्वत-उल-इस्लाम (इस्लाम की ताकत) नाम को उस शत्रुतापूर्ण इस्लामिक समुदाय के साथ जोड़ते है, जिसने हिन्दू शासन को ख़त्म किया। मस्जिद आज एक खंडहर की तरह है, लेकिन इस्लामिक संरचनाओं के बीच स्वदेशी मेहराब, फूलों की आकृतियां, मनुष्य और जानवरों की छवियाँ देखी जा सकती है। 


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