Qutub Minar - क़ुतुब मीनार


Qutub Minar - क़ुतुब मीनार

       क़ुतुब मीनार शायद दिल्ली और भारत के सबसे प्रतिष्ठित और पहचान योग्य स्थलों में से एक है। दिल्ली के महरौली क्षेत्र में स्थित यह एक मीनार और जीत का स्तम्भ है जो क़ुतुब परिसर का हिस्सा है जिसे साल 1993 में एक विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है।  

       यह मीनार अपनी ऊंचाई और उम्र दोनों में अद्वित्य है, 800 साल से अधिक पुराना, क़ुतुब मीनार दुनिया में सबसे ऊँची मीनारों में से एक है। 

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Qutub Minar - क़ुतुब मीनार

    इसके आसपास के पुरातात्विक क्षेत्र में ओर भी रोचक और ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक है, जिनमे विशेष रूप से - शानदार अलाइ दरवाज़ा (Alai Gate), लोह स्तम्भ (Iron Pillar) और क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद (Quwwat-ul-Islam) मुख्य है जिसे 27 हिन्दू और जैन मंदिरों को गिराकर प्राप्त की गई सामग्री से बनाया है। 

History of Qutub Minar - क़ुतुब मीनार का इतिहास 

       क़ुतुब मीनार अफगानिस्तान में "जाम के मीनार" से प्रेरित है जिसका निर्माण साल 1190 में दिल्ली की मीनार से लगभग एक दशक पहले हुआ था, यह अफ़ग़ान वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो बाद में इंडो-इस्लामिक वास्तुकला में विकसित हुआ। सामान्यतः भारत में मीनारों के इस्तेमाल की गति बहुत धीमी थी, इन्हे अक्सर मुख्य मस्जिद से अलग रखा जाता था।  

       Qutub Minar की स्थापना एक विजय स्तम्भ के रूप में की गई थी, जिसे भारतीय हिन्दू शासकों के ऊपर मुग़ल सेनाओं की जीत के उत्सव में बनाया गया था। इसने दिल्ली के दिल में पहली मुस्लिम विजय पर मुहर लगाई। मीनार में पांच अलग-अलग मंजिलें है और प्रत्येक को अलग रूप से सजाया गया है, जिसमे एक छोटी बालकनी उन्हें अलग करती है। 


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       क़ुतुब-उद-दीन ऐबक, जो उस समय मोहम्मद गौरी का एक डिप्टी था, लेकिन बाद में उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का संस्थापक बना, ने साल 1199 में क़ुतुब मीनार की पहली मंजिल का निर्माण शुरू किया। ऐबक का जन्म अफगानिस्तान में हुआ था। वह युद्धनीति के कई रूपों में अच्छी तरह से शिक्षित और कुशल था। ऐबक को एक गुलाम के रूप में अफगान सरदार मोहम्मद गौरी को बेचा गया था। 

       राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद, गौरी अपने घर अफगानिस्तान वापस जाते हुए, दिल्ली और अजमेर का नियंत्रण अपने सेना कमांडर और पसंदीदा गुलाम क़ुतुब-उद-दीन को सौंप गया। ऐबक को क़ुतुब-उद-दीन जिसका अर्थ है "वफ़ादारी का ध्रुव तारा" की उपाधि से गौरी ने ही सम्मानित किया था। 

       साल 1206 में गौरी की मृत्यु के बाद, ऐबक स्वतंत्र को गया और दिल्ली सल्तनत की नींव रखी, जिसे हम ममलूक या गुलाम वंश के नाम से भी जानते है और दिल्ली हिंदुस्तान की राजधानी बनी।  

Iron Pillar Qutub Minar - क़ुतुब मीनार delhiblogs
Iron Pillar - Qutub Minar - क़ुतुब मीनार

       दिल्ली के अंतिम हिन्दू राजपूत साम्राज्य पर अपनी जीत को प्रतिकात्मता देने के लिए, ऐबक ने एक भव्य मस्जिद और मीनार के निर्माण का आदेश दिया। पहले से स्थापित हिन्दू और जैन मंदिरों को तोड़कर उनसे प्राप्त लाल बलुआ पत्थर से साल 1199 में क़ुतुब मीनार की पहली मंजिल का निर्माण कार्य शुरू किया गया। इस मंजिल पर मोहम्मद गौरी की प्रशंसा के शिलालेख है। 

       हालाँकि, अपने विजय स्तम्भ के पूर्ण निर्माण से पहले ही क़ुतुब-उद-दीन ऐबक की मृत्यु हो गई और वह केवल पहली  मंजिल ही पूरी करा सका। 

       ऐबक के उत्तराधिकारी और दामाद शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश ने मीनार की तीन ओर मंजिलों को पूरा किया। साल 1369 में, एक आसमानी बिजली ने शीर्ष मंजिल को नष्ट कर दिया। फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने क्षतिग्रस्त मंजिल का पुनः निर्माण किया और मीनार में एक ओर मंजिल को जोड़ा। बाद में शेरशाह सूरी ने भी इस मीनार में एक प्रवेश द्वार बनवाया जब वह शासन कर रहा था और हुमायूँ निर्वासन में था। 

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Qutub Minar - क़ुतुब मीनार

      Qutub Minar को जैसा हम आज देखते है उसे आखिरकार फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने साल 1369 में पूरा किया। साल 1505 में, करीब 400 साल बाद एक भूकंप ने मीनार को नुकसान पहुँचाया, जिसकी मरम्मत सिकंदर लोधी ने की थी। सिकंदर लोधी ने मीनार में आखिरी बड़ा बदलाव किया, जिससे यह बड़ा और लंबा हो गया और वर्तमान आकार दिया। 

       19वीं शताब्दी में एक अंग्रेजी मेजर रोबर्ट स्मिथ ने भी मीनार के शीर्ष पर गलत सलाह के चलते एक छतरी बनाने का विफल प्रयास किया। यह छतरी आज भी मीनार के पास दूर कोने में एक अवशेष के रूप में रखी है, इस छतरी को "स्मिथ्स फॉली" (Smith's Folly) के नाम से जाना जाता है। 

Smith's Folly at Qutub Minar

Name of Qutub Minar - क़ुतुब मीनार का नाम

       मीनार के नाम को लेकर इतिहासकारों के परस्पर विरोधी विचार है। कई इतिहासकारों का मानना है की इसका नाम भारत के पहले मुस्लिम शासक क़ुतुब-उद-दीन ऐबक के नाम पर रखा गया था, जबकि अन्य का तर्क है कि इसका नाम बग़दाद के एक संत ख्वाजा क़ुतुब-उद-दीन बख्तियार काकी के सम्मान में रखा गया था। जो इल्तुतमिश को अपने आध्यात्मिक गुरु के रूप में बहुत आदरणीय थे। 

       कुछ समकालीन खातों में क़ुतुब मीनार का उल्लेख क़ुतुब साहिब की छड़ी या लठ के रूप में किया गया है। ऐसा माना जाता था की उनकी छड़ी आकाश को भेद सकती थी और खुद ख्वाजा पीर की तरह धरती को स्वर्ग से जोड़ती थी। ऐसी भी मान्यता थी की इस स्वर्गीय स्मारक (मीनार) का निर्माण अतीत में हुई कई घटनाओं का परिणाम था। 


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Foundation and Architecture - आधार और वास्तुशिल्प

       क़ुतुब मीनार 73 मीटर ऊँचा, लाल बलुआ पत्थर से बना टॉवर है, जिसे 1199 में शुरू किया गया था। इसका व्यास मीनार के शीर्ष पर 2.75 मीटर से लेकर इसके आधार पर 14.32 मीटर है और इसमें गोलाकार एवं कोणीय संरचनाएं है। कुल मिलाकर मीनार में 379 घुमावदार सीढ़ियां है। 

       ऐबक के समय में दिल्ली सात राजपूत शासकों द्वारा शासित सात शहरों का एक संघ था। उनमे राजा अनंगपाल का लाल कोट शहर बहुत महत्वपूर्ण था। इसलिए जब ऐबक ने लाल कोट को जीत लिया, तो उसने अपनी उपलब्धि का एक अमिट निशान छोड़ने का फैसला किया और शहर के बीचों-बीच क़ुतुब मीनार का निर्माण शुरू किया। 

       ऐबक ने भारत की धरती पर पहली मस्जिद का निर्माण भी शुरू किया। वह यह सब बनाने के लिए इतना बेताब था की उसने दो दर्ज़न से अधिक हिन्दू मंदिरों को ज़मीन पर धकेलने का आदेश किया और उनके पत्थर के इस्तेमाल से निर्माण शुरू किया। 


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       Qutub Minar की संरचना में 5 मंजिलें है, जिसमे से प्रत्येक में बालकनी है। इसकी पहली 3 मंजिलों में केवल लाल बलुआ पत्थर (Red Sandstone) और शीर्ष की 2 मंजिलों में संगमरमर और लाल पत्थर दोनों का उपयोग किया गया है। मीनार में उपयोग की गयी सामग्री और इसका डिज़ाइन,  निर्माण के बदलते समय के संकेत है। क़ुतुब मीनार उसी युग की अन्य संरचनाओं के बीच प्रमुखता से खड़ा है। 

       मीनार के करीब, भारत में निर्मित पहली मस्जिद क़ुव्वत-उल-इस्लाम (Quwwat-ul-Islam) स्थित है। मस्जिद के आँगन में एक लोहे का स्तम्भ (Iron Pillar) खड़ा है जिसकी ऊंचाई 7 मीटर है और यह जमीन में 1 मीटर तक धंसा है। यह लौह स्तम्भ एक कीर्ति स्तम्भ है जिसे ध्वज के रूप में भगवान् विष्णु के लिए चन्द्रगुप्त II द्वारा तीसरी शताब्दी में बनवाया गया था। स्तम्भ का मूल स्थान उदयगिरि, मध्य प्रदेश था जहाँ से इसे दिल्ली लाया गया। यहाँ क्लिक करें 

लौह स्तम्भ या Iron Pillar of Delhi की अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

       हालाँकि, मीनार को दूर से देखने पर यह एक सादी संरचना की तरह दिखता है, जो धरती के गर्भ से निकलते हुई एक विशालकाय चिमनी के सामान है। पर एक नजदीकी नज़र हमारे विचार बदल सकती है। यह संरचना सुन्दर शिलालेखों से सुशोभित है और इसकी बालकनियाँ सजावटी कोष्ठक द्वारा सुशोभित है। लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर मीनार की सरल सुंदरता को एक स्वर प्रदान करते है।


Qutub Minar - Alai Minar
Qutub Minar - Alai Minar

       हरे भरे बाग़ और पुरानी संरचनाओं के खंडहर, जो मीनार को घेरते है, एक हसीन साज़िश की आभा प्रदान करते है, जो सूरज की घटती रौशनी के साथ ओर गहरी दिखाई देने लगती है।  


Lightening on Qutub Minar - बिजली का चमकना

       ऐसा कहा जाता है की बिजली कभी भी एक जगह दो बार नहीं टकराती, लेकिन क़ुतुब मीनार जैसे ऊँची संरचना हमेशा एक अपवाद रही है। इस बात के कई सबूत और रिकॉर्ड है जब मीनार से बिजली टकराई है और अन्य प्राकर्तिक आपदाओं ने दुनिया के सबसे ऊँची पत्थर की मीनार को नुकसान पहुँचाया है। 
   
       पहली बार दर्ज की गई बिजली की मार साल 1368 में हुई थी, जिसके परिणाम स्वरुप मीनार की शीर्ष मंजिल को गंभीर क्षति पहुंची थी। साल 1503 में दूसरी बार नुकसान पहुंचा, जिसकी मरम्मत सिकंदर लोधी ने कराई। अगली बड़ी क्षति साल 1803 के भूकंप के दौरान हुई, जिसने फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ द्वारा शीर्ष पर बनाए गए कपोला को स्थायी रूप से नष्ट कर दिया। 


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Masjid at Qutub Minar

       अधूरे मीनार को देखते हुए लार्ड वेलस्ली ने मेजर रोबर्ट स्मिथ को आवश्यक मरम्मत के किये अधिकृत किया। उन्होंने इंडो-इस्लामिक कपोला को एक बंगाली शैली की छतरी का स्थान दिया, पर इस्लामी प्रभुत्व के गौरवशाली स्तम्भ पर एक हिन्दू छतरी को देखना लोगों को बड़ा हास्यास्पद लगा और मजबूरन लार्ड वेलस्ली को इसे साल 1848 में हटाना पड़ा।

       इन सब हादसों के बावजूद, मीनार ऊध्वार्धर से केवल 65 सेंटीमीटर ही झुकी है, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सुरक्षित मानता है। ASI का मानना है की भूकंपीय खतरा, अंग्रेज़ों द्वारा दोषपूर्ण मरम्मत और बारिश के पानी का रिसना इस ऐतिहासिक महत्त्व की मीनार के लिया एक बड़ा खतरा बना हुआ है, इसीलिए यह ASI की संरक्षण सूचि में प्रमुख है। 

Qutub Festival - कार्यक्रमों का आयोजन

       हाल की में, 13वीं शताब्दी की यह प्रतिष्ठित संरचना कई आयोजनों और विरासत की सैर कराने वाले कई मंचो के साथ एक कला और संस्कृति गंतव्य बन गया है। यहाँ नवम्बर-दिसंबर में वार्षिक "क़ुतुब महोत्सव" का आयोजन होता है, जहाँ कलाकार, संगीतकार और नृतक तीन दिनों तक प्रस्तुति देते है। आजकल इस विरासत स्थल को आधुनिक तकनीक का उपयोग करके सफ़ेद रंग के 445 LED लाइट बिंदुओं की मदद से रोशन किया जाता है। 


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Different Opinion - विरोधाभास

       कुछ लोगों का मानना है की यह इस्लामी मीनार नहीं है और ना ही इसका निर्माण मुस्लिम शासकों ने करवाया है, बल्कि वास्तव में यह एक ध्रुवस्तम्भ - विष्णुस्तंभ या प्राचीन हिन्दू खगोलीय वेधशाला का केंद्रीय अवलोकन स्तम्भ है। उनके अनुसार यह स्तम्भ 24 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की तरह बनाया गया है, जिसकी प्रत्येक पंखुड़ी एक "होरा" (जैसे घडी का एक घंटा) का प्रतिनिधित्व करती है। 

       मीनार के प्रत्येक मंजिल के शीर्ष पर मध्य बिंदुओं से खींची गई ऊध्वार्धर प्रक्षेपण रेखाएं, इसके आधार पर एक कमल का फूल बनाती है, जिस आकाश से मीनार के शीर्ष पर देखा जा सकता है। 24 पंखुड़ियों वाला कमल का फूल विशुद्ध रूप से एक हिन्दू अवधारणा है। इसे पश्चिम एशिया के शुष्क भागों से आये मुस्लिम राजाओं से नहीं जोड़ा जा सकता, जहाँ कमल उगते ही नहीं। 

Qutub Minar - क़ुतुब मीनार
Qutub Minar - क़ुतुब मीनार

       इस मान्यता के समर्थन में एक तर्क क़ुतुब मीनार से सटी महरौली बस्ती का भी दिया जाता है, जो संस्कृत भाषा के 'मिहिर-आलय' से बना है। यह उस बस्ती को दर्शाता है जहाँ राजा विक्रमादित्य के दरबार के जाने-माने खगोलशास्त्री "वराह मिहिर" अपने सहायकों, गणितज्ञों और तकनीशियनों के साथ रहते थे। 

       उन्होंने खगोलीय अध्ययन के लिए इस मीनार का उपयोग एक अवलोकन बिंदु के रूप में किया। इस मीनार के चारों ओर मंडप थे, जो हिन्दू राशि चक्र के 27 नक्षत्रों को समर्पित थे।

       इस मीनार से जुड़े सभी मुस्लिम सुल्तानों ने इसके आवरण को उलट दिया, मानव और जानवरों की आकृतियों वाले पत्थरों को पलट दिया या हटा दिया और अरबी भाषा के शिलालेख डाल दिए। इन सुल्तानों की प्रशंसा इसलिए की जा सकती है की उन्होंने मीनार के निर्माण करने का कोई दावा नहीं किया और ना ही ऐसा कोई शिलालेख बनवाया जिस पर लिखा हो की उन्होंने इसका निर्माण शुरू किया। 

Qutub Minar - क़ुतुब मीनार
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How To Reach Qutub Minar - कैसे पहुंचे 

     भारतीय आगंतुकों के साथ SAARC & BIMSTEC देशों के नागरिकों का प्रवेश टिकट 35/- रूपए का है और अन्य विदेशी सैलानियों के लिए 550/- रूपए है। 15 वर्ष तक के बच्चे मुफ्त प्रवेश कर सकते है। क़ुतुब मीनार सप्ताह के सभी दिनों में खुला रहता है और आने का समय सुबह 7:00 बजे से शाम 5:00 तक है। 

       स्मारक की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के मौसम के दौरान होता है, जब मौसन ठंडा और सुखद होता है। मीनार के लिए सबसे नज़दीकी दिल्ली मेट्रो स्टेशन - Qutub Minar Metro Station है। मेट्रो से बाहर निकलकर ऑटो या रिक्शा की मदद से परिसर तक जा सकते है जो 6-8 मिनट की दूरी पर है। 


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        दिल्ली का महत्वपूर्ण आकर्षण, जिसे अवश्य की देखना चाहिए, हिन्दू, जैन और मुस्लिम वास्तुकला के विभिन्न पहलुओं को खूबसूरती से दर्शाता है। 800 साल से भी पहले नींव रखे जाने के बावजूद क़ुतुब मीनार पृथ्वी पर सबसे ऊँची ईंट की मीनार के रूप में खड़ा है। अपने आसपास के अन्य ऐतिहासिक इमारतों के साथ, यह एक विश्व विरासत स्थल है। जो हर साल एक लाख से अधिक प्रयटकों को आकर्षित करता है।


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