Mandi House - मंडी हाउस
Mandi House - मंडी हाउस
मंडी हाउस, कनॉट प्लेस और ITO के बीच स्थित, क्या कोई आवासीय परिसर, मार्किट, एक अध्ययन केंद्र है या यह किसी ईमारत या सिर्फ एक मेट्रो स्टेशन का नाम है?
यह इन सभी में से केवल कोई एक स्थान नहीं है, यह दिल्ली का सबसे पुराना सांस्कृतिक केंद्र है। दिल्ली का अपना 'ब्रॉडवे' है, जहाँ आपको शहर के सबसे पुराने थिएटर, डांस और संगीत स्थल, आर्ट गैलरीज , सभागृह, देश की सामाजिक सेवा प्रसारण प्रणाली 'दूरदर्शन' और उत्कृष्ट नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा यानि 'NSD' मिलेंगे।
1940 के आसपास निर्मित, Mandi House मूल रूप से एक सुन्दर बगीचे के साथ एक महलनुमा घर था, जिसके मालिक 'मंडी' के राजा थे, जो वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। बाद में 'दूरदर्शन' और 'हिमाचल भवन' के निर्माण के लिए इसे ध्वस्त कर दिया गया, इन सभी विध्वंसों और पुनर्निर्माणों के बीच मंडी हाउस का केवल नाम ही बचा रह गया।
अंग्रेजो ने जब शाही राजधानी को कोलकाता से नई दिल्ली स्थानांतरित किया तब 'J-सर्कल' के आसपास के भूखंडों को कई शाही रियासतों को आवंटित किया जैसे - बहावलपुर, नाभा, जींद, मालेरकोटला और मंडी (हिमाचल प्रदेश के निर्माण से पहले)
मंडी राज्य के 18वें राजा, सर जोगिन्दर सेन बहादुर ने 1930 के दशक के अंत और 1940 के शुरुआत में यहाँ मंडी हाउस का निर्माण कराया जो आज के हिमाचल भवन के सामने था। यह घर दो मंजिला था और उस पर एक छोटा सा गुम्बद था, उसके आकर्षण को निखारने के लिए एक पत्ते के आकर का सुन्दर बगीचा था।
स्वतंत्रता के बाद, सरकारी कार्यालयों के निर्माण के लिए सरकार ने बाकी शाही घरों की तरह इस भवन को भी अपने कब्जे में ले लिया और 1970 के दशक में इसे तोड़कर 'दूरदर्शन' का मुख्यालय बना दिया गया। 'बहावलपुर हाउस' की तरह यह इतना सौभाग्यशाली नहीं रहा, जो आज भी 'NSD' परिसर के रूप में खड़ा हुआ है।
Mandi House आने वाली एक सड़क का नाम 'बाराखम्बा रोड' है, जिसका नाम यहाँ पर स्थित उस पुराने मकबरे के नाम पर है जिसकी छत 12 खम्भों पर समर्थित थी और जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में मुहम्मद तुग़लक़ के काल में हुआ।
जब नई दिल्ली का निर्माण किया जा रहा था तब अंग्रेजों द्वारा इसी बाराखंभा मकबरे का इस्तेमाल एक ऑफिस के रूप में किया गया। लेकिन कुछ समय बाद यह मकबरा अचानक गायब हो गया इस सवाल के साथ के यहाँ हकीकत में कोई मकान या मकबरा था भी या नहीं।
1 मई, 1955 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मंडी हाउस सर्किल के दूसरी तरफ, बाराखंभा रोड पर 'सप्रू हाउस' का उद्धघाटन किया। किसी सरकारी कार्यालय से मिलता जुलता यह भवन सर तेज बहादुर सप्रू की स्मृति में बनाया गया था जो एक स्वतंत्रता सेनानी, वकील और राजनीतिज्ञ थे। 'सप्रू हाउस' भारतीय विश्व मामलों की परिषद् का मुख्यालय बना।
विश्व मामलों में नेहरू जी के जूनून को सभी जानते है पर खुद उन्हें यह नहीं पता था की उनका यह जूनून सांस्कृतिक प्रदर्शनों में तब्दील हो जाएगा और 'सप्रू हाउस' से आगे निकलकर पुरे मंडी हाउस में फैल जाएगा। आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 'JNU' में स्थित 'इंडियन स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज' 1969 से पहले 'सप्रू हाउस' में ही हुआ करता था।
1960 के दशक की शुरुआत में, नृत्य प्रदर्शन Mandi House की एक सामान्य स्थिरता बन गई और विभिन्न संगीत एवं रंगमंच के प्रदर्शन के लिए एक स्थान बन गया। उस समय ज्यादातर पंजाबी नाटकों का मंचन किया जाता था। दशक के अंत तक, भगवन दास रोड पर स्थित NSD यानि 'नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा' अस्तित्व में आया और 1970 के आसपास थिएटर का ज्यादातर एक्शन 'श्री राम सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट्स' के साथ यहाँ स्थानांतरित कर दिया गया।
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा या NSD, भारत के कुछ बेहतरीन और दिग्गज अभिनेताओं का 'alma mater' यानि मातृ संस्था रही है। दिल्ली के ठन्डे मौसम में यह जगह त्यौहार और सांस्कृतिक उत्साही लोगों से भरी रहती है जो यहाँ कतार लगा कर बड़े प्रोडक्शन नाम और प्रदर्शन के लिए खड़े रहते है।
कल्पना कीजिए की यह वही जगह है, जिसमे नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, मरहूम इरफ़ान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे दिग्गज मौजूद थे। फ़िल्मी जगत का ग्लैमर प्राप्त करने के लिए हम दिल्ली वाले सबसे नजदीक यहीं पहुंच सकते है।
पुरे शहर में थिएटर समूहों के रूप में, कमानी ऑडिटोरियम और लिटिल थिएटर ग्रुप (LTG) जैसे स्थानों की आवश्यकता हुई। साथ ही एक उभरते हुए आर्ट द्रश्य ने लगातार अपनी जगह खोजने की कोशिश की, जिससे 'त्रिवेणी कला संगम' और 'ललित कला अकादमी' जैसे संस्थानों की शुरुआत हुई जहाँ - श्रीधरानी गैलरी, आर्ट हेरिटेज गैलरी और त्रिवेणी गैलरी में विभिन्न तरह की प्रदर्शनियाँ और मंचन आयोजित होते है।
Mandi House के समीप थोड़ा कम प्रसिद्ध पर रोचक 'प्राकृतिक इतिहास का राष्ट्रीय संग्रहालय' भी था, जिसकी स्थापना 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के समय में हुई। इसका मकसद पर्यावरण और प्रकृति के प्रति जागरूकता पैदा करना था और यह देश के भूवैज्ञानिक धन , प्राचीन पाण्डुलिपियां और पाषाणकालीन नमूनों और पक्षियों एवं स्तनधारियों के जीवाश्म के विशाल ख़ज़ाने का घर था।
इस संग्रहालय में नर्मदा घाटी, गुजरात से प्राप्त डायनासोर के अंडे के जीवाश्म से लेकर पूर्व-मानव की खोपड़ी तक के नमूने थे। दुर्भाग्यपूर्ण 26 अप्रैल 2016 को संग्रहालय में आग लग गयी और सभी संग्रहों के साथ यह पूरी तरह से नष्ट हो गया परन्तु आज तक इसका कोई विकल्प नहीं बनाया गया।
मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन के पास बाबा बंदा सिंह बहादुर की एक विशालकाय मूर्ति उपस्थित है, जिसकी पट्टी के अनुसार वह पंजाब के पहले राजा थे। नजदीक ही 1799 में जन्मे प्रसिद्ध एवं महानतम रुसी लेखक एलेग्जेंडर पुश्किन की भी प्रतिमा है। हिमाचल भवन के साथ में ही एक टिन की छत के नीचे एक कब्र मौजूद है, जिस पर हज़रत नन्हे मियां की दरगाह लिखा हुआ है।
न केवल सांस्कृतिक स्थानों बल्कि यहाँ दिल्ली विश्वविद्यालय के दो कॉलेज - माता सुंदरी और लेडी इरविन भी है। और जब छात्रों की जरूरतों एवं चाहतों की बात आती है, तो मंडी हाउस कभी निराश नहीं करता। अपने स्थान की केन्द्रीयता के कारण एक विशाल भीड़ को आकर्षित करता हुआ यह खान-पान के लिए मशहूर है।
अग्रसेन की बावली
यहाँ सबसे प्रसिद्ध नजदीकी आकर्षण 'अग्रसेन की बावली' है, जो 108 सीढ़ियों के साथ दिल्ली में अपनी तरह की कुछ चुनिंदा जगहों में से एक है। हालाँकि यह साबित करने के लिए कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है की इस बावली का निर्माण किसने किया, पर यह माना जाता है की मूल रूप से इसे महाभारत काल में महाराजा अग्रसेन द्वारा बनाया गया था।
इस स्थान का उपयोग कई मशहूर भारतीय फिल्मों जैसे आमिर खान अभिनीत फिल्म PK और सलमान खान की सुल्तान के लिए किया गया है। बावली में आप रोज़ाना सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे तक निःशुल्क प्रवेश कर सकते है।
बाराखंभा स्मारक
मंडी हाउस से थोड़ी दूरी पर स्थित बाराखंभा समारक है, जो हलचल से भरे शहर के इस केंद्र को अपना नाम देता है - बाराखंभा रोड।
बंगाली मार्किट
बंगाली मार्किट दिल्ली के सबसे पुराने और लोकप्रिय बाज़ारों में से एक है। इस मार्किट का पश्चिम बंगाल से कोई सम्बन्ध नहीं है, 1930 में इसे बंगाली मल लोहिया द्वारा बनवाया गया था और इसका असली नाम बंगाली मल मार्किट ही है। यह मशहूर कनॉट प्लेस से मात्र एक KM की दूरी पर है।
यह बाजार अपनी समृद्ध और विस्तृत विविधता वाली मिठाईओं के लिए भी जाना जाता है जिसमे बंगाली स्वीट्स और नत्थू विशेषकर प्रसिद्ध है। यहाँ का माहौल आपके समय, प्रयास और पैसे के लायक है।
त्रिवेणी टेरेस कैफ़े
दिल्ली के केंद्र में स्थित एक कम ज्ञात और विचित्र टेरेस कैफ़े, त्रिवेणी का आकर्षण बहुत सरल पर अद्भुत है। यह कैफ़े छात्रों से लेकर कामकाजी पेशेवरों तक, कला प्रेमियों और फ्यूज़न खाने के प्रति उत्साही लोगों के लिए बेहतरीन विकल्प है।
श्रीराम सेंटर कैंटीन
यदि आप कम कीमतों पर स्वादिष्ट चाइनीज़ भोजन चाहते है तो यह स्थान आपके लिए ही है। यह छात्रों के बीच एक पसंदीदा स्थान है और विभिन्न वार्तालापों की मेजबानी के लिए एक प्रसिद्ध स्थान है।
Mandi House पहुंचने का सबसे आसान माध्यम दिल्ली मेट्रो है जिसका Mandi House Metro Station इसी जगह के नाम पर है। कनॉट प्लेस, इंडिया गेट और पुरानी दिल्ली के मशहूर स्थान यहाँ से कुछ ही दुरी पर स्थित है।
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Baba Banda Singh Bahadur |
1940 के आसपास निर्मित, Mandi House मूल रूप से एक सुन्दर बगीचे के साथ एक महलनुमा घर था, जिसके मालिक 'मंडी' के राजा थे, जो वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। बाद में 'दूरदर्शन' और 'हिमाचल भवन' के निर्माण के लिए इसे ध्वस्त कर दिया गया, इन सभी विध्वंसों और पुनर्निर्माणों के बीच मंडी हाउस का केवल नाम ही बचा रह गया।
Mandi House - इतिहास
नई दिल्ली के पुराने नक्शों के अनुसार, आज का मंडी हाउस सर्कल लगभग 100 साल पहले 'J-सर्कल' कहलाता था जो की यहाँ स्थित जयसिंहपुरा गाँव के नाम पर था इस गाँव के पास के क्षेत्र में ईंट के भट्टे, कुछ गाँव, बगीचे और खंडहर थे।अंग्रेजो ने जब शाही राजधानी को कोलकाता से नई दिल्ली स्थानांतरित किया तब 'J-सर्कल' के आसपास के भूखंडों को कई शाही रियासतों को आवंटित किया जैसे - बहावलपुर, नाभा, जींद, मालेरकोटला और मंडी (हिमाचल प्रदेश के निर्माण से पहले)
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Himachal Bhawan |
मंडी राज्य के 18वें राजा, सर जोगिन्दर सेन बहादुर ने 1930 के दशक के अंत और 1940 के शुरुआत में यहाँ मंडी हाउस का निर्माण कराया जो आज के हिमाचल भवन के सामने था। यह घर दो मंजिला था और उस पर एक छोटा सा गुम्बद था, उसके आकर्षण को निखारने के लिए एक पत्ते के आकर का सुन्दर बगीचा था।
स्वतंत्रता के बाद, सरकारी कार्यालयों के निर्माण के लिए सरकार ने बाकी शाही घरों की तरह इस भवन को भी अपने कब्जे में ले लिया और 1970 के दशक में इसे तोड़कर 'दूरदर्शन' का मुख्यालय बना दिया गया। 'बहावलपुर हाउस' की तरह यह इतना सौभाग्यशाली नहीं रहा, जो आज भी 'NSD' परिसर के रूप में खड़ा हुआ है।
Mandi House आने वाली एक सड़क का नाम 'बाराखम्बा रोड' है, जिसका नाम यहाँ पर स्थित उस पुराने मकबरे के नाम पर है जिसकी छत 12 खम्भों पर समर्थित थी और जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में मुहम्मद तुग़लक़ के काल में हुआ।
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Doordarshan Bhawan |
जब नई दिल्ली का निर्माण किया जा रहा था तब अंग्रेजों द्वारा इसी बाराखंभा मकबरे का इस्तेमाल एक ऑफिस के रूप में किया गया। लेकिन कुछ समय बाद यह मकबरा अचानक गायब हो गया इस सवाल के साथ के यहाँ हकीकत में कोई मकान या मकबरा था भी या नहीं।
1 मई, 1955 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मंडी हाउस सर्किल के दूसरी तरफ, बाराखंभा रोड पर 'सप्रू हाउस' का उद्धघाटन किया। किसी सरकारी कार्यालय से मिलता जुलता यह भवन सर तेज बहादुर सप्रू की स्मृति में बनाया गया था जो एक स्वतंत्रता सेनानी, वकील और राजनीतिज्ञ थे। 'सप्रू हाउस' भारतीय विश्व मामलों की परिषद् का मुख्यालय बना।
विश्व मामलों में नेहरू जी के जूनून को सभी जानते है पर खुद उन्हें यह नहीं पता था की उनका यह जूनून सांस्कृतिक प्रदर्शनों में तब्दील हो जाएगा और 'सप्रू हाउस' से आगे निकलकर पुरे मंडी हाउस में फैल जाएगा। आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 'JNU' में स्थित 'इंडियन स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज' 1969 से पहले 'सप्रू हाउस' में ही हुआ करता था।
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Sapru House |
1960 के दशक की शुरुआत में, नृत्य प्रदर्शन Mandi House की एक सामान्य स्थिरता बन गई और विभिन्न संगीत एवं रंगमंच के प्रदर्शन के लिए एक स्थान बन गया। उस समय ज्यादातर पंजाबी नाटकों का मंचन किया जाता था। दशक के अंत तक, भगवन दास रोड पर स्थित NSD यानि 'नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा' अस्तित्व में आया और 1970 के आसपास थिएटर का ज्यादातर एक्शन 'श्री राम सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट्स' के साथ यहाँ स्थानांतरित कर दिया गया।
Mandi House - वर्तमान
हिमाचल प्रदेश राज्य का आधिकारिक घर 'हिमाचल भवन' अब यहाँ स्थित है। इसमें पूरा साल कपड़ों और जूतों की सेल लगती है तथा दिल्ली से हिमाचल प्रदेश के विभिन्न स्थानों के लिए AC वॉल्वो बसें यहीं से चलती है। राष्ट्रिय टेलीविज़न प्रसारक 'दूरदर्शन' का मुख्यालय 'दूरदर्शन भवन' भी यहीं स्थित है तथा आसपास के बड़े क्षेत्र को अभी भी मंडी हाउस के नाम से जाना जाता है।![]() |
NSD - National School of Drama |
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा या NSD, भारत के कुछ बेहतरीन और दिग्गज अभिनेताओं का 'alma mater' यानि मातृ संस्था रही है। दिल्ली के ठन्डे मौसम में यह जगह त्यौहार और सांस्कृतिक उत्साही लोगों से भरी रहती है जो यहाँ कतार लगा कर बड़े प्रोडक्शन नाम और प्रदर्शन के लिए खड़े रहते है।
कल्पना कीजिए की यह वही जगह है, जिसमे नसीरुद्दीन शाह, पंकज कपूर, मरहूम इरफ़ान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे दिग्गज मौजूद थे। फ़िल्मी जगत का ग्लैमर प्राप्त करने के लिए हम दिल्ली वाले सबसे नजदीक यहीं पहुंच सकते है।
पुरे शहर में थिएटर समूहों के रूप में, कमानी ऑडिटोरियम और लिटिल थिएटर ग्रुप (LTG) जैसे स्थानों की आवश्यकता हुई। साथ ही एक उभरते हुए आर्ट द्रश्य ने लगातार अपनी जगह खोजने की कोशिश की, जिससे 'त्रिवेणी कला संगम' और 'ललित कला अकादमी' जैसे संस्थानों की शुरुआत हुई जहाँ - श्रीधरानी गैलरी, आर्ट हेरिटेज गैलरी और त्रिवेणी गैलरी में विभिन्न तरह की प्रदर्शनियाँ और मंचन आयोजित होते है।
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Kamani Auditorium |
Mandi House के समीप थोड़ा कम प्रसिद्ध पर रोचक 'प्राकृतिक इतिहास का राष्ट्रीय संग्रहालय' भी था, जिसकी स्थापना 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के समय में हुई। इसका मकसद पर्यावरण और प्रकृति के प्रति जागरूकता पैदा करना था और यह देश के भूवैज्ञानिक धन , प्राचीन पाण्डुलिपियां और पाषाणकालीन नमूनों और पक्षियों एवं स्तनधारियों के जीवाश्म के विशाल ख़ज़ाने का घर था।
इस संग्रहालय में नर्मदा घाटी, गुजरात से प्राप्त डायनासोर के अंडे के जीवाश्म से लेकर पूर्व-मानव की खोपड़ी तक के नमूने थे। दुर्भाग्यपूर्ण 26 अप्रैल 2016 को संग्रहालय में आग लग गयी और सभी संग्रहों के साथ यह पूरी तरह से नष्ट हो गया परन्तु आज तक इसका कोई विकल्प नहीं बनाया गया।
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Little Theatre Group |
मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन के पास बाबा बंदा सिंह बहादुर की एक विशालकाय मूर्ति उपस्थित है, जिसकी पट्टी के अनुसार वह पंजाब के पहले राजा थे। नजदीक ही 1799 में जन्मे प्रसिद्ध एवं महानतम रुसी लेखक एलेग्जेंडर पुश्किन की भी प्रतिमा है। हिमाचल भवन के साथ में ही एक टिन की छत के नीचे एक कब्र मौजूद है, जिस पर हज़रत नन्हे मियां की दरगाह लिखा हुआ है।
न केवल सांस्कृतिक स्थानों बल्कि यहाँ दिल्ली विश्वविद्यालय के दो कॉलेज - माता सुंदरी और लेडी इरविन भी है। और जब छात्रों की जरूरतों एवं चाहतों की बात आती है, तो मंडी हाउस कभी निराश नहीं करता। अपने स्थान की केन्द्रीयता के कारण एक विशाल भीड़ को आकर्षित करता हुआ यह खान-पान के लिए मशहूर है।
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Sangeet Natak Academy |
Mandi House - आस-पास
अग्रसेन की बावली यहाँ सबसे प्रसिद्ध नजदीकी आकर्षण 'अग्रसेन की बावली' है, जो 108 सीढ़ियों के साथ दिल्ली में अपनी तरह की कुछ चुनिंदा जगहों में से एक है। हालाँकि यह साबित करने के लिए कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है की इस बावली का निर्माण किसने किया, पर यह माना जाता है की मूल रूप से इसे महाभारत काल में महाराजा अग्रसेन द्वारा बनाया गया था।
इस स्थान का उपयोग कई मशहूर भारतीय फिल्मों जैसे आमिर खान अभिनीत फिल्म PK और सलमान खान की सुल्तान के लिए किया गया है। बावली में आप रोज़ाना सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे तक निःशुल्क प्रवेश कर सकते है।
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Agrasen / Ugrasen ki Baoli |
बाराखंभा स्मारक
मंडी हाउस से थोड़ी दूरी पर स्थित बाराखंभा समारक है, जो हलचल से भरे शहर के इस केंद्र को अपना नाम देता है - बाराखंभा रोड।
बंगाली मार्किट
बंगाली मार्किट दिल्ली के सबसे पुराने और लोकप्रिय बाज़ारों में से एक है। इस मार्किट का पश्चिम बंगाल से कोई सम्बन्ध नहीं है, 1930 में इसे बंगाली मल लोहिया द्वारा बनवाया गया था और इसका असली नाम बंगाली मल मार्किट ही है। यह मशहूर कनॉट प्लेस से मात्र एक KM की दूरी पर है।
यह बाजार अपनी समृद्ध और विस्तृत विविधता वाली मिठाईओं के लिए भी जाना जाता है जिसमे बंगाली स्वीट्स और नत्थू विशेषकर प्रसिद्ध है। यहाँ का माहौल आपके समय, प्रयास और पैसे के लायक है।
त्रिवेणी टेरेस कैफ़े
दिल्ली के केंद्र में स्थित एक कम ज्ञात और विचित्र टेरेस कैफ़े, त्रिवेणी का आकर्षण बहुत सरल पर अद्भुत है। यह कैफ़े छात्रों से लेकर कामकाजी पेशेवरों तक, कला प्रेमियों और फ्यूज़न खाने के प्रति उत्साही लोगों के लिए बेहतरीन विकल्प है।
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Shri Ram Centre for Art |
श्रीराम सेंटर कैंटीन
यदि आप कम कीमतों पर स्वादिष्ट चाइनीज़ भोजन चाहते है तो यह स्थान आपके लिए ही है। यह छात्रों के बीच एक पसंदीदा स्थान है और विभिन्न वार्तालापों की मेजबानी के लिए एक प्रसिद्ध स्थान है।
Mandi House पहुंचने का सबसे आसान माध्यम दिल्ली मेट्रो है जिसका Mandi House Metro Station इसी जगह के नाम पर है। कनॉट प्लेस, इंडिया गेट और पुरानी दिल्ली के मशहूर स्थान यहाँ से कुछ ही दुरी पर स्थित है।
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